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-ਸੰਤ ਰਾਮ ਉਦਾਸੀ

{ਸਾਂਦਲਬਾਰ , ਅਣਖਾਂ ਦੀ ਭੋਇੰ ,ਅਨ੍ਖੀਲੀਆਂ ਦੀ ਭੋਇੰ , ਅਣਖ ਨਾਲ ਜਿਓਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਭੋਇੰ ,ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਏਸੇ ਜਰਖੇਜ਼ ਭੋਇੰ ਦੀ ਉਪਜ ਸੀ.. } ... {ਅਸੀ ਤੋੜੀਆਂ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਕੜੀਆਂ ਬੜੇ ਹੀ ਅਸੀ ਦੁੱਖੜੇ ਜਰੇ; ਆਖਣਾ ਸਮੇਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਉਹ ਗਹਿਣੇ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਨਾ ਧਰੇ. -ਸੰਤ ਰਾਮ ਉਦਾਸੀ

Monday, September 21, 2009



चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?
हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .
था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,
तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .
खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,
मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .
मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है
दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;
तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों है?DEEPZIRVI. REACTIONS PLZ 9:23 pm (1 minute ago) delete DEEPZIRVI
deepzirvi@yahoo.co.in writes
सूरजों की बस्ती थी ,जुगनुओं का डेरा है ,
कल जहा उजाला था अब वहां अँधेरा है.
राह में कहाँ बहके ,भटके थे कहाँ से हम ,
किस तरफ हैं जाते हम , किस तरफ बसेरा है.
आदमी न रहते हों बसते हों जहां पर बुत ,
वो किसी का हो तो हो, वो नगर न मेरा है.
रहबरों के कहने पर रहजनों ने लूटा है ,
रौशनी-मीनारों पे ही बसा अँधेरा है .
मछलियों की सेवा को जाल तक बिछाया है ,
आजकल समन्दर में गर्दिशों का डेरा है.
दीप को तो जलना है,दीप तो जलेगा ही ,
रौशनी-अँधेरे का तो रहा बखेडा है deepzirvi@yahoo.co.in 9:24 pm (0 minutes ago) delete DEEPZIRVI
ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही
ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..

ये भी मैं हूँ वो भी मैं ही ..
एक बूँद गिरी पर गिरे कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद धरा पर गिरी कभी जो मैं ही हूँ .
एक बूँद अरिहंता बन गिरी समर-आँगन में ,
एक बूँद किसी घर गिरी नवोढा नयनन से ,
एक बूँद कही पर चली श्यामल गगनन से '
एक बूँद कहीं पर मिली सागर प्रियतम से ,
वो बूँद बनी हलाहल जानो मैं ही हूँ ,
वो बूँद बनी जो सागर जानो मैं ही हूँ,
वो बूँद बनी पावन तन जानो मैं ही था ,
वो बूँद बनी प्यासा मन जानो मै ही हूँ .
हर बूँद बूँद में व्यापक व्याप्त मैं ही हूँ
हर बूँद का मालिक पालक बालक मैं ही हूँ .
मैं सागर बादल कमल दामिनी गंगाजल ;
मैं पर्वत गहन गम्भीर हूँ जैसे विंध्यांचल .
बिरहन के मन की पीर से भीगा हूँ आंचल ,
मैं कुल ब्रह्मांड की बेटियों का धर्मी बाबुल .
मैं आदि अनादि मैं मध्य हूँ मैं ही हूँ अनंत ;
मै ग्रीष्म शिशिर हेमंत हूँ मै ही हूँ वसंत .
मैं बीज हूँ जड़ भी मैं ही फल फूल भी मैं .
मैं वो हूँ वो मैं ही हूँ जल कूल भी मैं .
मैं ही हूँ वर्ग पहेली ,वर्ग भी शब्द भी मैं .
मैं ही हूँ रस राग रंग का अर्थ भी मैं .
मैं जान अजान का भेद हूँ मैं ही हूँ ज्ञाता .
कुछ समझना बाकी न है , समझ भी न आता .
वो मायापति अकाल दयाल विशाल भी मैं .
वो घुटनों चलता मूढ़ मती जो बाल भी मैं
-deepzirvi@yahoo.co.in9815524600

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